¿Qué es lo más importante que debemos hacer en la Tierra?

Creo que deberíamos cuidar a los padres, no podemos ver a Dios en la tierra, tenemos a nuestros padres en forma de Dios a quienes podemos tratar como señor, cómo podemos olvidar lo que hicieron por nosotros desde nuestro nacimiento, pero como parte de esto, creo que deberíamos pensar en nuestra tierra madre, estamos ocupados haciendo actividades diarias, el día que empecemos a pensar en nuestra tierra madre, las cosas cambiarán automáticamente, cómo podemos olvidar lo que sacrifican todas las personas como Maharana Pratap, Bhagat singh, Veer Swavarkar, Guru Govind Singh por nuestra madre tierra.

Un muy buen poema para nuestra madre tierra, cada palabra de este poema tiene un significado excelente.

नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे,
(हे परम वत्सला मातृभूमि! मै तुझे निरंतर प्रणाम करता हु,)
त्वया हिन्दुभूमे सुखं वर्धितोहम्।
(तूने सब सुख दे कर मुझको बड़ा किया |)
महामङ्गले पुण्यभूमे त्वदर्थे,
(हे महा मंगला पुण्यभूमि!)
पतत्वेष कायो नमस्ते नमस्ते ।।१ ।।
(तेरे ही कारण मेरी यह काया, तुझको अर्पित, तुझे मै अनन्त बार प्रणाम करता हु ।।)
प्रभो शक्तिमन् हिन्दुराष्ट्राङ्गभूता,
(हे सर्व शक्तिमय परमेश्वर! हम हिन्दुराष्ट्र के अंगभूत घटक,)
इमे सादरं त्वां नमामो वयम् |
(तुझे आदर पूर्वक प्रणाम करते है।)
त्वदीयाय कार्याय बध्दा कटीयं,
(तेरे ही कार्य के लिए हमने कमर कसी है,)
शुभामाशिषं देहि तत्पूर्तये ||
(उसकी पूर्ति के लिए हमें शुभ आशीर्वाद दे ||)
अजय्यां च विश्वस्य देहीश शक्तिं,
(सारा विश्व का सामना कर सके, अजेय ऐसी शक्ति दे,)
सुशीलं जगद्येन नम्रं भवेत् |
(सारा जगत विनम्र हो ऐसा विशुद्ध (उत्तम) शील |)
श्रुतं चैव यत्कण्टकाकीर्ण मार्गं,
(तथा बुद्धि पूर्वक स्वीकृत, हमारे कंटकमय मार्ग को सुगम करे,)
स्वयं स्वीकृतं नः सुगं कारयेत् ।।२ ।।
(ऐसा ज्ञान भी हमें दे ।।)
समुत्कर्षनिःश्रेयसस्यैकमुग्रं
(अभ्युदय सहित निःश्रेयस की प्राप्ति का,)
परं साधनं नाम वीरव्रतम्
(वीर व्रत नामक जो सर्वश्रेष्ठ, साधन है,)
तदन्तः स्फुरत्वक्षया ध्येयनिष्ठा
(उसका हम लोगों के अंत: करण में स्फुरहण हो,)
हृदन्तः प्रजागर्तु तीव्रानिशम्।
(हमारे हृदय मे, अक्षय तथा तीव्र ध्येयनिष्ठा सदैव जागृत रहे।)
विजेत्री च नः संहता कार्यशक्तिर्
(तेरे आशीर्वाद से हमारी विजय शालीन संघटित कार्य शक्ति,)
विधायास्य धर्मस्य संरक्षणम्।
(धर्म का रक्षण कर।)
परं वैभवं नेतुमेतत् स्वराष्ट्रं
(अपने इस राष्ट्र को परम वैभव की स्थिति,)
समर्था भवत्वाशिषा ते भृशम् ।।३ ।।
(पर ले जाने में अतीव समर्थ हो ।।)
भारत माता की जय ।।

Jai Hind!