ारी आज़ादी के जवान सर स्वतंत्रता सेनानी जिम्मेदार ् ाहोंने ान दिया बल्कि उनके परिवार वाले भीा भीा भीा ा ा ा ा कविता उन ्र रार ा था ा कलम र ्बातों से लड़ा था.
कैसे भूलेंगे…
मरते वक्त भी उनका
वन्दे मातरम कहना;
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हँसते हँसते उनका
फांसी पैर चढ़ जाना;
लहू जिसने सींचा
ये भारत, जो कहलाता गुलिस्तां;
कैसे भूलेंगे उनकी कुर्बानियां.
्मनों की तलवार भी
उनके कलम के आगे झुक;
जिनके शब्दों के सागर से;
स्वतंत्रता की लहर उठ गयी;
न डूबेंगे हम हम ागर में.
कैसे भूलेंगे उस माँ को;
जिसने भेज दिया अपने बेटे को;
शहीद होने के लिए;
कैसे भूलेंगे उस पिता को;
जो गर्वित होंगे अपने बेटे के सहस र;
कैसे भूलेंगे उस बहन को;
जिसने देखा अपने भाई को;
शहीद होते हुए;
कैसे भूलेंगे उन दोस्तों को;
जो मरते वक्त भी साथ नहीं छोड़ गए;
कैसे भूलेंगे उनको;
जिनके साहस, कुर्बानियां, अश्रु का;
यही प्रमाण है;
कि आज हम कह सकते;
मेरा भारत महान.
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