¿Cuál es el poema hindi más inspirador que escribiste sobre Warriors?

ारी आज़ादी के जवान सर स्वतंत्रता सेनानी जिम्मेदार ् ाहोंने ान दिया बल्कि उनके परिवार वाले भीा भीा भीा ा ा ा ा कविता उन ्र रार ा था ा कलम र ्बातों से लड़ा था.

कैसे भूलेंगे…

मरते वक्त भी उनका

वन्दे मातरम कहना;

हँसते हँसते उनका

फांसी पैर चढ़ जाना;

लहू जिसने सींचा

ये भारत, जो कहलाता गुलिस्तां;

कैसे भूलेंगे उनकी कुर्बानियां.

्मनों की तलवार भी

उनके कलम के आगे झुक;

जिनके शब्दों के सागर से;

स्वतंत्रता की लहर उठ गयी;

न डूबेंगे हम हम ागर में.

कैसे भूलेंगे उस माँ को;

जिसने भेज दिया अपने बेटे को;

शहीद होने के लिए;

कैसे भूलेंगे उस पिता को;

जो गर्वित होंगे अपने बेटे के सहस र;

कैसे भूलेंगे उस बहन को;

जिसने देखा अपने भाई को;

शहीद होते हुए;

कैसे भूलेंगे उन दोस्तों को;

जो मरते वक्त भी साथ नहीं छोड़ गए;

कैसे भूलेंगे उनको;

जिनके साहस, कुर्बानियां, अश्रु का;

यही प्रमाण है;

कि आज हम कह सकते;

मेरा भारत महान.

Esta publicación ha sido enviada como mi entrada al Primer Desafío de Poesía Hindi por Kavita

Compartiré dos poemas escritos por mí … espero que sean lo suficientemente inspiradores

Las guerras no se pelean por amor, ni por tierra, ni por petróleo. Las guerras se pelean para saciar la sed y saciar el hambre.

पानीपत ..

उसने कई पानीपत लड़े थे दिल्ली में,
सल्तनत बचाने के लिए,
र उसकी सल्तनत,
जिंदा, भागते ‘कनाट प्लेस’ का
मुर्दा कोना ..
सालों से यहीं रह के जंग छेड़ा करता था,
म्युन्सिपल्टी तो कभी
‘कामन-वेल्थ’ गेम्स के खिलाफ ..

हालांकि ये गुनगुनी अगस्ति सुबह
लिहाज़ से जंग लायक न थी,
र मामला यहाँ हक़ का था,
उसका हक़,
उस सफ़ेद थैले में, र
लाल रंग में ‘कबाब-महल’ पुता था,
सड़क पे पड़ा था ..
हड्डी के टुकड़े, शायद
ांस के रेशे अब भी चिपके थे
..और अंतहीन भूख ..

वो खून से लथपथ, ाप
सल्तनत में बैठा,
उन आवारा कुत्तो को देख रहा था ..
वो इनसे अपना पानीपत
हार चूका था ..

सुमित

Otro

रखो अपनी कृपादृष्टि,
महलो पर, प्रासादों पर,
तुम करते रहो ऐश्वर्या वृष्टि,
राजभवनो में रहने वालो पर,
आकाश तले रहने वाले,
अपना खुदा बना लेंगे ..

तुम कोठियो के ड्राइंग रूमों का,
शौक से श्रृंगार करो,
पूँजीपति धन्ना सेठो का,
भर के उद्धहार करो,
अंगारों पर चलने वाले,
अपना खुँदा बना लेंगे ..

माटी से मूरत गढ़ते,
्हारों को क्यूँ देखोगे,
ांदी की मुरतो से पटे,
पूजा घर का तुम विस्तार करो,
इस्पातों में ढलने वाले,
अपना खुदा बना लेंगे ..

्वर्ण आभूषण से लदे फदे,
र्भ गृह में आँख मूँद,
्रसाद चढ़े छप्पन भोगो को,
र्ष तुम स्वीकार करो,
भूख मार कर सोने वाले,
अपना खुदा बना लेंगे ..

तुम रक्त पिपासु राक्षसों को,
रता का दान करो,
र्मो के ठेकेदारों को,
अजयता वरदान करो,
रोज़ रोज़ मरने वाले,
अपना खुदा बना लेंगे ..
अपना खुदा बना लेंगे… ..
सुमित

Escribí este poema con respecto a los valientes corazones de las fuerzas armadas indias. Escribió este poema después de un ataque en el centro de la fuerza aérea de Gurdaspur hace unos meses.

Mártir शहीद

क्या दिखलाते है टीवी वाले
रात को ही तो इनका फोन आया था
बोले थे मुन्नी की पसंदीदा महंगी बार्बी लाउंगा
तुझे घुमाने लॉन्ग ड्राइव ले जाउंगा।

माँ को तीरथ भी ले जाउंगा।

क्या दिखलाते है टीवी वाले
शहीद हो गए
रात घुसे थे आतंकी
में इनको मार गए।

र ये तो धनिया का घर है
ा रहती थी उसकी बूढी माँ
भी गोली मार गए।
क्या दिखलाते है टीवी वाले।

र्डर भी वे पार गए
्रता के पाठ भुला गए।
्ले आम मचा गए।
सपनों को मार गए।

क्या दिखलाते है टीवी वाले।

कुछ नेता आएँगे
की बेवा कहकर शॉल ओढा जाएंगे।
ाजसेविका आएगी आंसू भी जाएगी।
चैनल वाले आकर इंटरव्यू ले जाएंगे।

र कब समझेंगे ये
जानों की कीमत।
डेढ़ लाख से क्या मुझे मेरा पति लौटाएँगे?
खालीपन ये कैसे र पाएंगे।

बस राजनितिक रोटियाँ सेंक पाएंगे
दूजे को दोषी ठहराएंगे
र बिना समाधान
ाली हाथ रह जाएंगे
कोरे आंसू बहाएंगे।

– दा दाधीच
रुदासपुर शहीदों को नमन

Este es un poema dedicado al ejército indio:

्धवीर

(१)

र योद्धा ले प्रतिज्ञा मातृ-भूमि त्राण की,

र्ष वो प्रदान करे आहुति अपने प्राण की।

्वस्त करे वो देश-रक्षा, परम संकल्प है,

र्वक उसने चुना, ्यु का विकल्प है॥ १॥

(२)

सिंह-शक्ति सैन्य की, वीरता का चिह्न है,

के शस्त्र और प्रयत्न वन में अर्थहीन हैं।

मेघ-गर्जन-चक्रवात, आपदा निष्प्राण है,

्योंकि शूर एक सूर्य-तेज ा बाण है॥ २॥

(३)

्वदेश लक्ष्य शत्रु का, भी वो प्रहार करे,

र वज्र-शक्ति योद्धा, सदैव अरि-संहार करे।

री का दुर्ग वैरी-दल के लिए अभेद्य है,

्योंकि समरवीर के शौर्य का कवच अछेद्य है॥ ३॥

(४)

वसुधैव-कुटुम्बकम की रीति भारत-देश की,

किसी के भी प्रति नहीं, ावनाएं द्वेष की।

र जो भी माँ के मान पर स्वदृष्टि-पात का पाप करे,

्रचंड वीर सुत, अंत में विलाप करे॥ ४॥

(५)

रवीर उदार-रूप शान्ति के समय दिखाए,

र का करुण व्यवहार उसको लोकप्रिय बनाये।

रणवीर युद्ध के समय, ्रुओं को निराश करे,

उसका भीष्म काली-रूप, ्यों का विनाश करे॥ ५॥

(६)

सगर्व-गान जय-जवान-मंत्र का सज्जन करे,

र को नमो: -नमन, भारती सर्वजन करे।

समाज का कर्त्तव्य है कि वीर-बलि वृथा न जाए,

वो देश-विकास में हाथ दे और भू को श्रीनिवास बनाये॥ ६॥

॥ हिन्द॥

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्य पथ का मुसाफिर

पथ जाती है धन को,

सुख साधन को,

र कोई प्रेमिका के

र चितवन को।

र छोड़ ये सारे सुलभ पथ को

चुना है सत्य को

है तेरे त्याग और तप को।

पग-पग है र्राम पथ का,

ापदंड साहस जिस पथ का,

इंतिहान तप, और बल का,

मुसाफिर सत्य के अनवरत पथ का।

बुझ जाने पर वो स्थान पा नहीं सकता,

्प मुरझाने पर पूजा योग्य कहला नहीं सकता,

पर ओ मुसाफिर, विजय ध्वजा लहरा नहीं सकता।

सम्मान है चलना तेरा, सामान जलना तेरा,

संसार तेरा, तक ही जयगान करे,

फूलों, हारों, रोड़ी, चन्दन से पग-पग पर सत्कार करें।

र लौट अगर तू आएगा, अपना सर्वश लुटायेगा,

कोई ना पूछेगा तुझसे तूने कितने, त्याग किये,

तूने कितने अंगार सहे, बाधाओं के ज्वार सहे,

र अपने बदन ा तूने कब तक प्रकाश।

पग-पग है र्राम पथ का,

तू मुसाफिर सत्य के अनवरत पथ का… ..